परिचय:पद्मश्री प्रहलाद सिंह टिपाणिया जी
हमारा सौभाग्य है कि आज हमारे बीच हिन्दुस्तान के बहुत बड़े लोक गायक पद्मश्री प्रहलाद सिंह तिपानिया पधारें हैं।हम आपका और आपके सभी संगतकारों का संस्थान में हार्दिक स्वागत करते हैं।हम सभी विद्यार्थी खासकर आपके आभारी हैं कि आपने हमारे लिए ये वक़्त निकाला।आप सभी को बताना चाहेंगे कि तिपानिया जी कबीरपंथी भजनों के श्रेष्ठ गायक ही नहीं बल्कि मालवा शैली के जानकार कलाकार हैं।लुन्या खेड़ी उज्जेन में उन्नीस चौव्वन में जन्मे तिपानिया जी इतिहास में स्नातकोत्तर होने के बाद सालों से स्कूली शिक्षा में अध्यापक हैं।चौबीस की उम्र में तम्बूरे की आवाज़ से आकर्षित हो आपने इस निर्गुण भाव की गायकी में कदम रखा।सबकुछ अनौपचारिक ढंग से ही सीखा। अरसे से आकाशवाणी और दूरदर्शन के ज़रिये अपनी प्रतिभा का लौहा मनवा रहे तिपानिया जी को विश्व कलाजगत में सम्मान से देखा जाता है।आप बहुत सहज और सरलमना हैं।लोकवाद्यों और रतजगे के सहारे आप आज कबीर को गाने वालों में अव्वल हैं।गायन और कबीर की रचनाओं के विश्लेषण से आपने लोगों को अनौपचारिक रूप से बहुत गहरा ज्ञान दिया है। कबीर के सामाजिक सुधार के काम को आगे बढाते हुए प्रहलाद सिंह जी ने कई अपने नवाचारी कौशल से गायन की इस परम्परा को बहुत मान दिया है।शिखर सम्मान और संगीत नाटक अकादमी सम्मान सहित आपको पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा जा चुका है।कबीर का सन्देश फैलाने के उद्देश्य से आपने सन उन्नीस सौ सत्तानवे में कबीर स्मारक सेवा शोध संस्थान की स्थापना भी है।आपकी कई सीडी एलबम प्रकाशित-प्रसारित हो चुके हैं।आपकी प्रस्तुतियां सुनने से मध्य प्रदेश के कई गांवों में लोगों में सामाजिक जागरूकता आयी है और कुरीतियों के प्रति नकारात्मक भाव जागा है।इस मौके पर आपके साथ संगतकार के रूप में वायलिन वादक देवनारायण सारोदिया, ढोलक वादक अजय तिपानिया, हारमोनियम वादक धर्मेन्द्र तिपानिया और मंझिरा वादक मंगलेश माँगरोलिया ने शिरकत की है।
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